बुंदेलखंड में लुप्त होती प्रसिद्ध शेर नृत्यकला को जीवित कर रहे, महावीर वार्ड दुर्गा समिति के युवा
मयंक जैन – खुरई नवरात्रि पर्व पर बुंदेलखंड में विशेष महत्व रखने वाली शेर नृत्य परंपरा एक बार फिर से पुनर्जीवित होने लगी है.पूर्व यह प्रसिद्ध शेर नृत्य लोक कला जो गायब हो गई थी, उसे बुंदेलखंड में एक बार फिर से धीरे-धीरे शुरू किया जा रहा है. कभी मध्य भारत में अपनी पहचान बनाने वाली ये कला अब सिर्फ बुंदेलखंड की धरोहर बनकर रह गई है. तकनीक के इस युग में टेलीविजन, मोबाइल और इंटरनेट आने के बाद से प्रायः विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी बुंदेलखंड की प्रसिद्ध शेर नृत्य लोक कला धीरे-धीरे पुनर्जीवित हो रही है| खुरई स्थित महावीर वार्ड काली समिति द्वारा युवाओं द्वारा लोक शेर नृत्य कला प्रदर्शन नगर के मुख्य मार्ग से होकर महामंगला महाकाली मंदिर पठार से होकर किले परिसर मां बिजासन मंदिर में पहुंचे।
बुंदेलखंड में शेर नृत्य कला
बुंदेलखंड में शेर नृत्य कला
शेर नृत्य परंपरा फिर से हो रही शुरू: तकनीक के इस युग में टेलीविजन, मोबाइल और इंटरनेट आने के बाद से बुंदेलखंड की प्रसिद्ध शेर नृत्य लोक कला विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी थी, लेकिन अब एक बार फिर इसे पुनर्जीवित किया जा रहा है. 90 के दशक के बाद पूरी एक पीढ़ी जवान हो गई, लेकिन उसे इस बात की खबर ही नहीं कि बुंदेलखंड की गौरवशाली सांस्कृतिक लोक कला का डंका कभी आधे मध्य भारत में बजा करता था. अब एक बार फिर इस कला को जीवित करने के लिए लोग आगे आ रहे हैं. हालांकि इसका स्याह पक्ष यह भी है कि दिन भर शहर की सड़कों पर घूम कर नृत्य करने वाले इन युवाओं को उपहार के नाम पर सिर्फ 20 से 50 रुपए ही मिलते हैं. कभी उन्हें वह सम्मान और पारितोषिक नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे।